Sunday, September 9, 2007

सिस्टम बना रहा है नक्सली

स्टेन स्वामी झारखंड में मानवाधिकार के मुद्दों और नक्सलवाद पर लगातार लिखते रहे हैं. अपने हाल के इस लेख में वे विकास के अभाव और भ्रष्टाचार में आकंठ में डूबे तंत्र और नक्सलवाद पर नज़र डाल रहे हैं.





स्टेन स्वामी इन दिनों गांव में रहनेवाले लोगों का शांतिपूर्ण ढंग से जीवन जीना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है. इसकी वजह सरकार है और खासतौर पर पुलिस, जिसका आजकल एक सूत्री एजेंडा है उग्रवाद को काबू में लाना. हर दिन के अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस तरह की कहानियों से भरे पड़े हैं. कभी पुलिस पर उग्रवादियों के हमले, तो कभी उग्रवादियों पर पुलिस के हमले की खबरें. उग्रवादियों को तलाश करने और मारने की प्रक्रिया में समाज का हर व्यक्ति पुलिस की निगाह में संदिग्ध बन जाता है.





यहां तक कि समाज के वंचित समूहों के अधिकारों के हिफाजत के लिए खड़े व्यक्तियों/समूहों/संगठन भी इसके शिकार होते हैं. ऐसे लोगों पर नजर रखी जाती है, उन्हें धमकाया जाता है और यहां तक कि पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी किया जाता है. यह सब कुछ उग्रवाद से लड़ने के नाम पर किया जाता है.





एक दूसरी चीज, जो सबसे परेशान करनेवाली है कि सरकार `संदिग्ध उग्रवादियोंं' और `संदिग्ध अपराधियों' को पकड़ने, पीटने, प्रताड़ित करने और हत्या कर देने के लिए अनुमति दे रही है और प्रोत्साहित कर रही है. यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है. इसका मतलब हुआ कि जिसको भी स्थानीय लोग बिना किसी सबूत के `उग्रवादी' या `अपराधी' समझ लेंगे, उसे प्रताड़ित कर सकते हैं या हत्या कर सकते हैं. इसका यह भी अर्थ हुआ कि न्यायेतर प्रक्रियाएं स्वीकार्य हैं.





यह स्वयं राज्य को `आतंकवादी राज्य' बनाता है. कार्यशील प्रजातंत्र में न्यायपालिका को चाहिए कि वह सरकार और पुलिस के संविधानेतर व्यवहार पर रोक लगाये.विद्वान बार-बार यह बताते रहे हैं कि नक्सलवाद की जड़ें जनता द्वारा महसूस किये जानेवाले सामाजिक असंतोष के भीतर हैं. यह सामाजिक -आर्थिक -राजनीतिक व्यवस्था है, जो राज्य में नक्सलवाद की वृद्धि के लिए जवाबदेह है. इसके बावजूद आज भी सरकार आर्थिक , सामाजिक क्षेत्र में असली विकास के लिए गंभीर नहीं है. चलिए कुछ उदाहरण देखें:



झारखंड में सिंचाई की स्थिति




कुल 79.71 लाख हेक्टेअर भूमि में से मात्र 38.44 लाख हेक्टेअर खेती की जमीन है. राज्य में सिंचाई के विकास के सरकारी प्रयास के नजरिये से देखें तो वर्ष 2002 से वर्ष 2007 तक 1239 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. खरीफ मौसम के दौरान 10.5 फीसदी (3.8 लाख हेक्टेअर), रबी मौसम के दौरान 5 फीसदी(1.9 लाख हेक्टेअर) और गरमी के मौसम के दौरान 1-2 फीसदी(0.73 लाख हेक्टेअर) जमीन सिंचित हुई.(स्रोत: प्रभात खबर 12 फरवरी, 2007)90 फीसदी किसान अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अपनी जमीन पर निर्भर हैं और उनमें से 90 फीसदी जमीनों में सिंचाई की सुविधा नहीं है. इसी का नतीजा है ग्रामीण इलाकों में भीषण गरीबी. ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले किसानों की बेहतरी सरकार की जवाबदेही है. राज्य में 90 फीसदी आबादी इन्हीं की है. साफ है कि सरकार ग्रामीणो के मोरचे पर विफल रही है.






जब ग्रामीण गरीबी बढ़ती है और गांव के नौजवानों के पास रोजगार का कोई अवसर नहीं होता है, तब ऐसी स्थिति में उग्रवादी समूहों में उनके शामिल होने के आकर्षण को समझा जा सकता है. भारी खर्च और रक्तपात की कीमत पर नक्सलियों को मार गिराने के एक सूत्री एजेंडे पर काम करने के बजाय सरकार को खासतौर पर गांव के लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने की तरफ अपना ध्यान लगाना चाहिए.




भ्रष्टाचार का सवाल





भ्रष्टाचार के हर पहलू की खबरों से अखबार भरे रहते हैं. जितना ज्यादा इसकी तह में जायेंगे उतना ज्यादा भ्रष्टाचार आप पायेंगे. इनमें से अधिकांश जनता का धन है जो चोरी कर लिया गया है. इस धन की वापसी और भ्रष्टाचारियों को सजा देने की अब तक कोई गंभीर कोशिश नहीं की गयी है. कई दिनों तक भ्रष्टाचार की कई क हानियां प्रेस में प्रकाशित की गयीं, और उसके बाद उसे पूरी तरह भुला दिया गया. फिर उसके बाद जिंदगी पुरानी पटरी पर पहले की तरह चलने लगी.





सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार खत्म किया जा सकता है, अगर सरकार इस मुद्दे पर गंभीर हो. मगर, सरकार ऐसा करेगी नहीं क्योंकि सत्ताधारी वर्ग का फायदा जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार के बने रहने में है. कोई किसी पर उंगली नहीं उठा सकता है, क्योंकि यहां हर किसी के पांव भ्रष्टाचार के दलदल में सने हैं. इस तरह से सारा समाज कमजोर हो जाता है. यह सामाजिक और आर्थिक रूप से समृद्ध वर्गों के लिए रास्ता बनाता है ताकि इस स्थिति का वे फायदा उठायें और खुद `नेता' और `शासक ' बनें.





इसीलिए सरकार और सत्ताधारी वर्ग लगातार `नक्सलवाद' की निंदा करेगी. इसके साथ-साथ वह भ्रष्टाचार का संरक्षण भी करेगी. समाज के हाशिये पर पड़े लोगों और गरीबों का दमन जारी रहेगा.




अनुवाद: विनय भूषण, प्रभात खबर से साभार

source-hashiya.blogspot.com

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