Saturday, September 6, 2008

Article in Hindi on Tata atrocities in Singur..

आज सुबह के अखबारों में दो खबरें पढ़ीं. बाटा उद्योग के संस्थापक तथा कथित भारत मित्र थॉमस बाटा का टोरंटो में निधन हो गया. सिंगूर में रतन टाटा को अपनी लखटकिया कार नैनो के कारखाने पर ताला जड़ना पड़ा. बचपन में पढ़ी बेधड़क (या शायद बेढब) बनारसी की पंक्तियां उभर आईं- “देश में जूता चला, मशहूर बाटा हो गया / देश में लोहा गला, मशहूर टाटा हो गया / योजनाएं यूं चलीं, जैसे छिनालों की जबान / हम जमा करते रहे, खाते में घाटा हो गया”

मेरे मित्र अशोक वाजपेयी और राजेन्द्र मिश्र ऐसे कवियों को कवि नहीं मानते लेकिन ये पंक्तियां कितनी मौजू हैं. बाटा के जूतों की हालत थॉमस बाटा के गिरते स्वास्थ्य की तरह होती गई है. बाटा की फैक्टरी के मजदूरों के साथ कलकत्ता में ही बहुत अन्याय हुआ है. फिर भी बाटा भारत में कुछ प्रसिध्द अंग्रेजी कंपनियों ए.एच. व्हीलर, कॉलगेट और ब्रिटेनिया की तरह मशहूर और स्वीकार्य तो रहे हैं.


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