Sunday, December 2, 2007

नंदीग्राम और दंतेवाडा का कॉकटेल.....

शुभ्रांशु चौधरी





पिछले हफ्ते संसद में नंदीग्राम पर हो रही चर्चा में सीपीएम के सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा “हमने नंदीग्राम में जो कुछ किया है वह यह सुनिश्चित करने के लिये किया है कि कहीं नंदीग्राम दूसरा दंतेवाडा न बन जाए”।जाहिर है श्री सलीम इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि नंदीग्राम में माओवादी कब्जा करना चाहते हैं और सीपीएम इसे नहीं होने देना चाहता जैसा दंतेवाडा में हो चुका है ।







पिछले कुछ हफ्तों में नंदीग्राम की अनैतिकता को लेकर अखबारों में खूब लिखा गया और खासकर टीवी ने इसे खूब उछाला और संसद में भी इस पर हंगामा हुआ ।







नंदीग्राम में लोग सीपीएम की गुण्डा वाहिनी को हरमद वाहिनी कहते है जिस वाहिनी का उपयोग वहां “शांति स्थापना” के लिये किया गया । हरमद स्पैनिश भाषा का शब्द है । स्पेन में हरमद उन्हे कहा जाता है जो गांवों में हमला कर लोगों को मारते हैं और उसके बाद गांव की सम्पत्ति लूटकर चले जाते हैं ।
क्या हरमद वाहिनी की तुलना सलवा जुडुम से की जा सकती है?









पिछले हफ्ते ही किसी ने मुझे दंतेवाडा से फोन करके यह पूछा कि दंतेवाडा में तो माओवादियों को भगाने के नाम पर हज़ार से अधिक को मारा जा चुका है । यहां जो हो रहा है उसकी तुलना में तो नंदीग्राम में कुछ भी नहीं हुआ तो मीडिया इसे क्यों नहीं उठाती? सलवा जुडुम की हिंसा को लेकर संसद में कोई बहस क्यों नहीं होती ?







सवाल बिल्कुल सही है ।





इसके बाद इस हफ्ते मैंने छत्तीसगढ के कुछ जानकारों से यही सवाल पूछा । एक ने कहा “नंदीग्राम कलकत्ता जैसे एक बडे शहर के करीब है और आदिवासियों में अब तक कोई मध्यम वर्ग नहीं पैदा हो पाया है जो दंतेवाडा के सवाल को उठा सके और नंदीग्राम को उठाने के पीछे विरोधी दल तृणमूल कांग्रेस का बडा हाथ था पर छत्तीसगढ में तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों आश्चर्यजनक रूप से आदिवासियों के खिलाफ एकजुट हैं” ।








जैसा कि आपको मालूम है कि पश्चिम बंगाल की मार्क्सवादी सरकार नंदीग्राम में एक केमिकल हब बनाना चाहती थी । इंडोनेशिया की सलीम कम्पनी के लिये जमीन अधिग्रहण का काम आज से 11 महीने पहले शुरु हुआ तो नंदीग्राम के लोग भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के नाम से एक मंच पर इकट्ठा हुए । गैर राजनीतिक इस मंच में सभी पार्टियों से जुडे लोग शामिल हुए जिसमें सीपीएम के कार्यकर्ता भी शामिल हैं जो अपनी ज़मीन केमिकल हब के लिये नहीं देना चाहते थे । पर मूल रूप से इस मंच को विरोधी दल तृणमूल कांग्रेस और जमात ए उलेमा ए हिंद का समर्थन प्राप्त हुआ । माओवादियों की उपस्थिति की खबरें भी शुरु से ही आती रहीं ।






भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी ने रणनीति के तहत यह तय किया था कि वे किसी भी सरकारी व्यक्ति को प्रभावित गांवों में घुसने नहीं देंगे और उन्होंने केमिकल हब का समर्थन करने वाले काफी लोगों को डरा धमकाकर अपने घरों से भगा भी दिया था । केमिकल हब का समर्थन कर रहे ये लोग पिछले कई महीनों से सीपीएम की मदद से शिविरों में रह रहे थे । सीपीएम कहता है इन लोगों को वापस उनके घर भेजेने के लिये ही उन्होंने पिछले महीने का ऑपरेशन नंदीग्राम किया ।








आपको यह भी याद होगा कि 14 मार्च 2007 को जब पुलिस ने बलपूर्वक गांवों में घुसने की कोशिश की थी तो भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी ने इसका तगडा मुकाबला किया था और पुलिस की गोलीबारी में 14 लोग मारे भी गए थे । हाल ही में सीबीआई ने 14 मार्च की पुलिस फायरिंग को अनावश्यक एवं असंवैधानिक करार दिया है ।







आपको यह भी याद होगा कि इसके ठीक एक दिन बाद 15 मार्च को छत्तीसगढ में रानीबोदली की घटना हुई थी जिसमें माओवादियों ने 55 पुलिसकर्मियों को मार दिया था।






संयोगवश उस दिन मैं लंदन में था तो उस शाम बीबीसी टीवी के एशिया टुडे प्रोग्राम में मुझे इसी विषय पर चर्चा करने के लिये बुलाया गया । प्रेज़ेंटर निशा पिल्लई लंदन में पली बढी हैं पर मूलत: केरल की हैं और उन्होंने जब मुझसे पहला सवाल पूछा कि यह कितनी बडी घटना है तो मैंने कहा निशा आपको आज की दंतेवाडा की घटना को कल की नंदीग्राम की घटना से जोडकर देखना होगा । निशा ने तुरत टोका तो आप कहना चाहते हैं ये दोनों घटनाएं जुडी हुई हैं और नंदीग्राम में भी माओवादी हैं ? मैंने कहा नहीं मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं । मैं नहीं जानता कि नंदीग्राम में माओवादी हैं या नहीं पर मैं यह कहना चाह रहा हूं कि यदि आप भारत के माओवादियों पर नज़र डालें तो उनका नेतृत्व चाहे कहीं से भी हो पर उनकी पैदल सेना हमेशा आदिवासी और दलित ही है । माओवादी आज तक उन्हीं इलाकों में पाए जाते हैं जहां जंगल है पहाड है और भयानक गरीबी है । माओवादियों का 95% कैडर पढा लिखा नहीं है ।







मैं आपकी बात से सहमत हूं कि रानीबोदली की घटना संभवत: नक्सली हिंसा की सबसे भयावह घटना होगी पर मैं उससे उतना चिंतित नहीं हूं । निशा ने कहा मैं समझी नहीं ।






मैंने कहा मैं समझाता हूं । नक्सली जंगल और पहाड में रहते है और आदिवासी कैडर की मदद से बीच बीच में रानी बोदली जैसे कांडों को अंजाम दे सकते हैं । यह भयावह घटना हैं पर इससे भारत जैसे विशाल देश की सेहत पर कोई अधिक फर्क नहीं पडता ।






हमने कश्मीर में पाकिस्तान की थाउज़ैंड कट पॉलिसी को देखा है । भारत में इतने बेरोज़गार हैं कि आप 10 पुलिसवालों को मारेंगे हम उनकी जगह 100 भेज देंगे ।पर जिस बात का मुझे डर है वह यह कि यदि नंदीग्राम और दंतेवाडा का मिलन हो गया तो सर्वनाश हो जायेगा ।







नंदीग्राम से मेरा अर्थ उन तमाम गांवों से है जहां हमारी सरकार ऐसी आधुनिक फैक्टरियां लगाना चाहती है जिसमें उन गांवों के किसानों के अर्ध शिक्षित बेटों को उनकी ज़मीन जाने के बाद भी नौकरी नहीं मिलेगी । और नंदीग्राम जैसे गांवों के किसान का अर्धशिक्षित बेटा जिस दिन यह आशा छोड देगा कि आज चल रही विकास की अंधी दौड में उसका कोई स्थान नहीं है उस दिन नंदीग्राम और दंतेवाडा का कॉकटेल बडा ही भयावह होगा । भारत को इस संभावित कॉकटेल से डरना चाहिये ।






माओवादियों का दंतेवाडा का आदिवासी कैडर बहुत लगनशील है और आप मेरी मानिए कि उसके साथ यदि नंदीग्राम का शिक्षित दिमाग जुड गया, कोहराम मच जाएगा ।






स्टूडियो से बाहर निकलकर निशा से मुझसे कहा, “तुमने मुझे डरा दिया । लाइव कैमरा मैं पहली बार डरी । मेरा दिमाग चक्कर मार रहा है” ।






एक दूसरे मित्र की प्रतिक्रिया से लेख खत्म करता हूं । मैंने इस मित्र से पूछा कि नंदीग्राम को लेकर इतने बुद्धिजीवी सडक पर उतरे । मैंने सुना है कि कलकत्ता में विरोध सभा को किसी ने आयोजित नहीं किया, किसी ने कोई आमंत्रण नहीं भेजा पर इतने लोग सडक पर उतरे कि लोग याद नहीं कर पा रहे हैं कि इतनी बडी स्वत:स्फूर्त विरोध रैली कलकत्ता में पिछली बार कब हुई थी । इस रैली में वियतनाम की तर्ज़ पर आवाज़ उठी आमार नाम तोमार नाम, नंदीग्राम नंदीग्राम...तो रायपुर में सलवा जुडुम के विरोध में ऐसा क्यों नहीं हुआ ?








मित्र ने कहा छत्तीसगढ में इन दिनों सोचना स्थगित है । मेरे आश्चर्य व्यक्त करने पर उन्होंने बताया यह संभवत: नए राज्य का असर है । नया राज्य बनने के बाद इतने अधिक संसाधन अचानक इस प्रदेश में आ गए हैं कि इस बंदरबांट में चाहे वह पत्रकारिता हो या साहित्य या सिविल सोसाइटी कोई भी इससे बच नहीं पा रहा है । छत्तीसगढ में बुद्धिजीवियों के स्वत:स्फूर्त विरोध को सडक पर आने में अभी थोडा समय लगेगा...







shu@cgnet.in

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