'हत्याओं' पर बस्तर पुलिस को नोटिस
बुधवार, 02 मई, 2007 को 12:46 GMT तक के समाचारविनोद वर्माबीबीसी संवाददाता, दिल्लीhttp://www.bbc. co.uk/hindi/ regionalnews/ story/2007/ 05/070502_ bastar_encounter .shtml
बस्तर में पुलिस द्वारा 12 आदिवासियों को मार दिए जाने की ख़बरों के बीच छत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग ने पुलिस को नोटिस देकर स्पष्टीकरण माँगा है.छत्तीसगढ़ के एक स्वयंसेवी संगठन की शिकायत पर आयोग ने यह नोटिस जारी किया है.बस्तर के बीजापुर से सात किलोमीटर दूर स्थित गाँव संतोषपुर और पास के दो गाँवों के लोगों का आरोप है कि पुलिस ने नक्सली मुठभेड़ के नाम पर 31 मार्च को 12 ग्रामीणों की हत्या कर दी.पुलिस का कहना है कि छत्तीसगढ मानवाधिकार आयोग के नोटिस के बाद मामले की जाँचकी जा रही है.बस्तर में पुलिस के हाथों ग्रामीणों के मारे जाने की ख़बर ऐसे समय में सामने आ रही है जब देश भर में गुजरात पुलिस के फ़र्ज़ी मुठभेड़ की ख़बरों पर बवाल मचाहुआ है.गुजरात पुलिस के आलाअफ़सरों पर आरोप है कि उन्होंनें फ़र्ज़ी मुठभेड़ में एकयुवक और उसकी पत्नी को मार डाला. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
*शिकायत*यह मामला पहली बार आठ अप्रैल एक टेलीविज़न चैनल की ख़बर में सामने आया था जिसमें कुछ ग्रामीणों का बयान प्रसारित किया गया था.बाद में रायपुर के दो अख़बारों में इस घटना का ज़िक्र किया गया था.मानवाधिकार पर कार्य करने वाली एक संस्था 'फोरम फॉर फैक्ट फाइंडिंग,डॉक्युमेंटेशन एंड एडवोकेसी' (एफ़एफ़डीए) ने इन्हीं ख़बरों के आधार परछत्तीसगढ़ मानवाधिकार आयोग का दरवाज़ा खटखटाया था.इस संस्था के संचालक सुभाष महापात्र ने बीबीसी को बताया कि मीडिया रिपोर्ट मिलने के बाद वे ख़ुद संतोषपुर गए थे और वहाँ ग्रामीणों से बात की थी.उनका कहना है, "गाँव वाले तो यह विस्तार से बता रहे हैं कि किस तरह पुलिस गाँववालों को पकड़कर ले गई और अगले दिन सुबह उनकी लाश मिली."वे कहते हैं, "लेकिन वे किसी भी तरह से इसे लिखकर देने को तैयार नहीं हैं."बीजापुर और दंतेवाड़ा में आदिवासियों के बीच यूनीसेफ़ के साथ मिलकर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने इस मामले की शिकायत करते हुए राष्ट्रपति, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित बहुत से लोगों को पत्र भेजा है.
*जाँच*बीजापुर पुलिस ज़िले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एमआर आहिरे ने बीबीसी से हुईबातचीत में माना कि राज्य मानवाधिकार आयोग ने नोटिस भेजा है.घटना के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, "31 मार्च को संतोषपुर एक पार्टी गईथी और वहाँ नक्सलियों के साथ एक एनकाउंटर हुआ था."उन्होंने कहा, "चूंकि रात हो गई थी इसलिए पुलिस एनकाउंटर के बाद सर्च नहीं करपाई थी और वापस लौट आई थी. उस समय पुलिस को कोई लाश नहीं मिली थी. थाने मेंअपराध दर्ज कर लिया गया था."आहिरे बताते हैं, "हमें मीडिया से पता चला कि वहाँ ग्रामीण मारे गए हैं.हालांकि हमारे पास आकर किसी ग्रामीण ने शिकायत नहीं की है."उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग के नोटिस के बाद एक पुलिस अधिकारी से कहा गयाहै कि वे इस मामले की जाँच करें. उनका कहना है कि इस जाँच के बाद ही घटना कापूरा विवरण देना संभव होगा.घटना बीबीसी ने टेलीविज़न चैलन ईटीवी के पत्रकार नरेश मिश्रा और बस्तर जाकरग्रामीणों से बात कर चुके स्वतंत्र पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी से घटना के विवरण के बार में बात की.ग्रामीणों ने बताया कि 31 मार्च को संतोषपुर में एक शादी हो रही थी और वहाँ पासके दो गाँवों पोंजेर और भोगमगुड़ा से लोग आए हुए थे.ग्रामीणों का कहना है कि राज्य पुलिस के कुछ जवान, राज्य सरकार द्वारा नियुक्तविशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) और केंद्रीय अर्धसैनिक बल के कुछ जवान शाम को वहाँपहुँचे और कुछ लोगों को पकड़कर ले गए.ग्रामीणों के अनुसार सुबह उन लोगों ने अलग-अलग जगह बारह लोगों की लाशें मिली.इस घटना में अपने पति को खो चुकी भोगमगुड़ा की आयति ने बताया "मेरे पति भोगलकमलू को एसपीओ घर से पकड़कर ले गए फिर संतोषपुर में हमने उसकी लाश देखी. उसेटंगिये और कुल्हाड़ी से मार डाला था."ग्रामीणों का कहना है कि 31 मार्च की रात पुलिस ने कई घरों को भी जला दिया था.ग्रामीण मानते हैं कि उनमें से एक, कोडियम बोज्जा ज़रुर नक्सलियों से जुड़ा हुआथा लेकिन बाक़ी समान्य ग्रामीण थे.इन सभी लोगों पर दबाव था कि वे गाँव छोड़कर सल्वाजुड़ुम के कैंपों में जाकररहें.सल्वा जुड़ुम उस आंदोलन का नाम है जिसे राज्य सरकार जनआंदोलन कहती है और इसेचलाए रखने के लिए धन-बल से सहयोग कर रही है.इस आंदोलन के चलते बस्तर के हज़ारों ग्रामीणों को गाँवों से विस्थापित करकेसड़क के किनारे अस्थाई कैंपों में रखा गया है.कई संगठनों ने आरोप लगाया है कि सल्वा जुड़ुम के चलते आदिवासियों की मुश्किलेंबढ़ी हैं. संस्थाओं का आरोप है कि नक्सलियों से निपटने के नाम पर पुलिस को इतनेअधिकार दे दिए गए हैं कि उसकी जवाबदेही ही ख़त्म हो गई है.हिमांशु कुमार कहते हैं, "नक्सली समस्या के चलते राज्य सरकार और अदालतों सहित सभी को लगता है कि सारा दारोमदार पुलिस पर ही और इसलिए किसी भी सूरत में पुलिस को हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए."एफ़एफ़डीए के सुभाष महापात्र कहते हैं, "पुलिस का आतंक इतना है कि लोग अपनी बातभी खुलकर नहीं कह सकते."लेकिन पुलिस के अधिकारी कहते हैं कि पुलिस पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और जिसके ख़िलाफ़ भी शिकायत पाई जाएगी सख़्त कार्रवाई की जाएगी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment