Thursday, May 3, 2007

Is Bastar heading the Nandigram way????

बस्तर को नंदीग्राम बनाने में तुली सरकार

साभार : देशबन्धु

जबरिया जमीन अधिग्रहण का विरोध होगा रायपुर (छत्तीसगढ़‌)। टाटा इस्पात संयंत्र के लिए आदिवासियों की जमीन जबरदस्ती अधिग्रहित करने राज्य सरकार तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। कलिंग नगर और नंदीग्राम की राह पर बस्तर को झोंका जा रहा है। पुलिसिया दमन के चलते एक वर्ष के भीतर लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के 150 ग्रामीणों पर झूठा आरोप लगाकर उन्हें जेल में ठूंसा गया।यदि दमनात्मक कार्रवाई आगे भी जारी रही तो अधिग्रहण के विरूध्द आदिवासी जमीनी लड़ाई लड़ेंगे और ऐसे में जोर-जबरदस्ती की गई तो इसके लिए रमन सरकार केसाथ-साथ केन्द्रसरकार पूरी तरह जिम्मेदार होगीे।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता चितरंजनबक्शी ने उक्ताशय की चेतावनी आज 'देशबन्धु' से चर्चा करते हुए दी। उन्होंने कहाकि सरकार जमीन अधिग्रहण के मामले में जबरदस्ती करने पर उतारू है। बस्तर कलेक्टर परआरोप लगाते हुए श्री बक्शी ने कहा कि वहां के जिलाधीश गणेशशंकर मिश्रा नेमीडिया को भ्रम में रखा है। पूर्व में 13 सूत्रीय मांगों को पूरा किये जाने कावादा करने के बाद प्रभावित किसानों से ग्राम सभा के माध्यम से हस्ताक्षर करसहमति ले ली गई। पर बाद में कलेक्टर ने ग्रामीणों को गुमराह किया, जिसके चलते 1750परिवार अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री से लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के किसान यही बात कहना चाहते हैं कि वे जमीननहीं देंगे। ऐसे में प्रदेश सरकार विकल्प तलाशे।

छत्तीसगढ़ में और भी शासकीय जमीन खाली पड़ी है, उसे टाटा को दिया जा सकता है। बस्तर में संयंत्र लगाकर आखिरकिसका विकास चाहते हैं, क्योंकि इसमें न तो रोजगार का मापदंड तय है और न ही प्रभावित परिवारों की जमीन के बदले जमीन देने की शर्त पूरी हो रही है।श्री बक्शी ने कहा कि आदिवासी अब ये बर्दाश्त नहीं करेंगे कि पश्चिम बंगाल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में जबरिया कार्रवाई हो। बेतियापाल के फागूराम ने देशबन्धु कोबताया कि उनकी 22 एकड़ जमीन पर सरकार की नजर है। वहीं सोरीगुड़ा के सोमारू की 25 एकड़जमीन, बेलर के कानूराम मौर्य की साढ़े 5 एकड़ जमीन, दापा के बरताराम की 26 एकड़ सिंचित जमीन को अधिग्रहित करने से उनके सामने रोजी-रोटी का खतरा उत्पन्न होने का अंदेशा है।किसान आदिवासियों ने बताया कि सिंचित भूमि वालों को 10 लाख रुपये प्रति एकड़ आर असिंचित को 7 लाख रुपये, पड़त वाली जमीन को 5 लाख प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजादेने कलेक्टर को 13 सूत्रीय मांग सौंपा गया था। मगर राजस्व परिपत्र (4) भू-अर्जनकी धारा का उल्लंघन करते हुए कलेक्टर ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण कर भू-अर्जनकी धारा (6) के अंतर्गत कार्रवाई की है और अधिग्रहण का आदेश जारी किया है।वरिष्ठ नेता श्री बक्शी ने कहा कि ग्रामीणों ने अब दिल्ली जाकर सीधे प्रधानमंत्री से बात करने का निर्णय लिया है। अब तक वे राज्य सरकार से बातसुनने की मांग कर रहे थे। ग्रामीणों का दल 12 मई को दिल्ली जा रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के रक्षा की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की भी है। बस्तर में अधिसूचित क्षेत्र के तहत वहां के निवासियों को विशेष अधिकार मिले हैं। उसका खुला उल्लंघन हो रहा है।सीपीआई सांसद इस मुद्दे को संसद में जोर से उठाने की तैयारी में है। पांचवीं अंकसूची के तहत आदिवासियों को मिले अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी राज्यपाल की होती है और केन्द्र सरकार का फर्ज बनता है वह उन्हें निर्देशित करें।पहली बात ये है कि 20 जुलाई और 23 अगस्त को जो ग्रामसभा बुलाई थी उसमें किसानोंकी संघर्ष समिति ने 13 सूत्रीय मांग पेश किया था। इन मांगों को मंजूर करने केवादे पर ही ग्राम सभा में सहमति दी गई थी। इस बात को मीडिया में उजागर नहीं किया गया। उल्टे यह कहा गया कि ग्राम सभा एक ही मुद्दे पर दुबारा आयोजित नहीं की जासकती। जबकि पंचायत कानून की धारा 45 में कहा गया है कि किसी एक विषय पर पंचायतमें यदि निर्णय हो जाता है तो 6 माह बाद पंचायत उसी विषय के समाधान के लिए ग्राम सभा बुला सकती है।24 फरवरी को पंच-सरपंचों ने ग्रामीणों की सहमति से ग्राम सभाओं का आयोजन किया था,तब सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि ग्रामीण अपनी जमीन टाटा को नहीं देंगे।उन्होंने आरोप लगाया कि जिला प्रशासन सहित प्रदेश सरकार टाटा के हित संरक्षण के लिये काम कर रहा है। उसे जन-भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं। दुखद बात ये है अबतो सरकार जमीन अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी कर दी है। न तो निजी जमीन और नसरकारी जमीनों के लिए दावे-आपत्तियों पर सुनवाई की गई, इसका सामूहिक विरोधहोगा। 9 माह के इंतजार के बाद न तो शासन ने और न कलेक्टर ने ग्रामीणों की सुधली है। राजधानी आये बेलियापारा के फागूराम, परोदागांव के बरातू, सिरीसगुड़ा केसुमारू, बेलर के घरसूराम, दावपान के बस्तूराम और कमल गजभिये ने अपनी समस्या आज देशबन्धु प्रतिनिधि को बताई। रविवार को लोहंडीगुड़ा के क्षेत्र के 10 ग्रामों केपंच-सरपंच राजधानी पहुंचे तथा मीडिया के समक्ष जमीन अधिग्रहण को दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई बरतते हुए इसका विरोध किया।

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